Tuesday, March 29, 2022

तारीफ करूं क्या उसकी - Taarif Karoon Kya Uski - LYRICS- https://youtu.be/Xf9D2OYsjrk

तारीफ करूं क्या उसकी जिसने मां को सजाया

मैया के माथे टीका टीके का रंग सुनहरा 
मैया के गले में हरवा हरवे का रंग सुनहरा
वो भक्त बड़ा अलबेला जिसने मां को पहनाया
तारीफ करूं क्या उसकी जिसने मां को पहनाया


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घटा घनघोर है जिया मनमोर है - Ghata Ghanghor Hai Jiya Manmor Hai - LYRICS-https://youtu.be/mA-AlNBJsl0

 घटा घनघोर है जिया मनमोर है तू आजा मेरी मैया
माथे मैया के टीका सोहे बिंदिया पे मन मेरा
नाक मैया के नथनी सोहे झाले पे मन मेरा
जो मेरी मैया नजर लगावे भला न उसका होगा 
नजरिया उतार लूंगी कजरा लगाए दूंगी 
तू आजा मेरी मैया...


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काली काली कालिका - Kali Kali Kalika - LYRICS-https://youtu.be/0wt1Yd-rZQ0

काली काली कालिका कलकत्ते वाली कालिका 
मेरे अंगना में रस बरसा ओ काली काली कालिका...

आजा मैया आजा मैं टीका पहना दूं 
टीका पहना के में बिंदिया लगा दूं, सिंदूर लगा दूं 
आजा मां आजा अब देर न लगा  ओ काली काली....


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Tuesday, March 22, 2022

झूला झूलन चली आई - Jhoola Jhoolan Chali Aayi - LYRICS-https://youtu.be/jR7Y7dTGkQo

झूला झूलन चली आई re मेरी अम्बे भवानी

पहलो झूला कैलाश पे झूली शिव की नार कहाई re
मेरी अम्बे भवानी
झूला झूलन चली आई re मेरी अम्बे भवानी

दूजो झूला अवधपुरी में झूली राम की नार कहाईं re
मेरी अम्बे भवानी
झूला झूलन चली आई re मेरी अम्बे भवानी

तीजो झूला गोकुल में झूली कृष्ण प्रिया कहाइ re
मेरी अम्बे भवानी
झूला झूलन चली आई re मेरी अम्बे भवानी

चौथो झूला वैकुंठ में झूली विष्णु की नार कहाई re
मेरी अम्बे भवानी
झूला झूलन चली आई re मेरी अम्बे भवानी

पांचों झूला मैहर में झूली शारदा नाम धराई re
मेरी अम्बे भवानी
झूला झूलन चली आई re मेरी अम्बे भवानी

छटवां झूला मंदिर में झूली जग जननी कहलाई re
मेरी अम्बे भवानी
झूला झूलन चली आई re मेरी अम्बे भवानी

Saturday, March 19, 2022

चोरी माखन की करे है - Chori Makhan Ki Kare Hai - LYRICS-https://youtu.be/3lrC7F9RtA4

चोरी माखन की करे है दिन रात यशोदा मैया तेरा ललना

जब मैं जाऊं पनिया भरण को ये घर में घुस जावे
माखन खावे मटकी फोड़े उधम खूब मचावे
ये तो धोखे से करे है मैया घात
चोरी माखन की करे है दिन रात यशोदा मैया तेरा ललना

सब ग्वाले याके रहे साथ में चले बना के टोली
जब ग्वालिन कोई मिले अकेली करता खूब ठिठोली
ये तो माने न काऊ की मैया बात
चोरी माखन की करे है दिन रात यशोदा मैया तेरा ललना

एक दिन जाने कुंज गालों में बाएं मेरी झटकी
मेरे सिर पे धरी हुई थी दही मक्खन की मटकी
या से पेश न हमारी कछु खात
चोरी माखन की करे है दिन रात यशोदा मैया तेरा ललना

बालाजी को लाड़ लड़ावे - Balaji Ko Laad Ladaave - LYRICS-https://youtu.be/gL5mFLuL1oE

बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

जब बालाजी का जन्म हुआ है सोने के थाल बजावे माता अंजनी
बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

जब बालाजी की छठी हुई है लाल लंगोट पहनावे माता अंजनी
बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

जब बालाजी का नाम रखा है भर भर थाल लुटावे माताअंजनी
बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

जब बालाजी ने खाना सीखाचूरमा के लड्डू खिलावे माताअंजनी
बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

जब बालाजी ने चलना सीखाउंगली पकड़ के चलावे
माताअंजनी
बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

जब बालाजी ने पढ़ना सीखा राम ही राम रटावे माता अंजनी
बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

जब बालाजी ने उड़ना सीखापर्वत पर्वत घुमावे माता अंजनी
बालाजी को लाड़ लडावे माता अंजनी

Thursday, March 17, 2022

Bhartiy Tyohaar

*भारतीय त्यौहार औऱ उनका वैज्ञानिक रहस्य*

होली -  होली का नाम लेते ही रंग रंगीला उत्सव आपके मन में आता है।  पर क्या मालुम है कि इस त्यौहार को मनाने के पीछे हमारे सनातन ऋषि -मुनियो का क्या विज्ञान था , वह समयाभाव और अज्ञानता की वजह से लुप्त हो गया

जैसा क़ि आप जानते हैं कि हमारे देश में चार ऋतुएँ होती है , शरद ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतू के आरम्भ में फागुण  महीने में यह त्यौहार मनाया जाता है।  

जो स्वरूप आज इस त्यौहार का है वह 
प्राचीन काल नहीं था , और न ही रासायनिक रंगो का प्रयोग होता था। 

सभी पड़े लिखे लोग जानते हैं कि यदि शरीर से उत्सर्जन पदार्थ नहीं निकालेंगे तब वह शरीर में हानिकारक तत्व को पैदा कर देते हैं, और जब वह बाहर निकलते हैं तब बहुत कष्ट होता है। 

शरद ऋतुओ में हमारी त्वचा से पसीना जो एक उत्सर्जन पदार्थ है रुक जाता है जिससे त्वचा के रन्द्र यानि छेद रुक जाते है और जब बाहर के वातावरण का तापमान बढ़ जाता है तब त्वचा में छोटे छोटे दाने दाने निकलने लगते है , जो बहुत कष्टकारी होते हैं , बच्चो में अक्सर चैत्र मॉस में 
चेचक और खसरा भी इसी का परिणाम है। 

इसी कष्टकारी पीड़ा को दूर करने के लिए हमारे ऋषियों ने होली नामक उत्सव को मनाने की परम्परा का प्रारम्भ किया था,

इसमें पूर्णिमा को चांदनी रात में आग जलाकर हवन करके वातावरण को इतना गर्म कर दिया जाता है कि शरीर से पसीना निकलने लगे और शरीर के रन्द्र खुल जाए , फिर क़िसी भीगे कपडे से शरीर को साफ कर लिया जाता है। 

अगले दिन टेसू /पलाश के फूल जो पहले दिन पानी में भिगो दिए जाते है उनको पिचकारी की सहायता से एक दुसरे पर डालकर होली मनाते है जिसमे कपडे फूलो के रंग से काफी टाइम तक भीगे रहने की वजह से पसीना जो अम्लीय होता है और टेसू जो क्षारीय होता है , त्वचा को उदासीनीकरण कर देते हैं।  

आपने देखा होगा कि घमौरियों के लिए भी केल्शियम कार्बोनेट पाउडर लगाकर उदासीनीकरण करके (जो कि ठोस रूप में होता है ) त्वचा को और नुक्सान पहुचाते है रंद्र को रोक देते हैं , जबकि तरल रूप में होली खेलकर हम पूरे साल में एक बार अपने शरीर की शुद्धि ही नहीं पूरे समाज को स्वस्थ रखते है , पर ध्यान रहे रासायनिक रंगो से नहीं। 

देर से ही सही पर अपने ऋषियों की परम्परा को सनातन वैज्ञानिकता से जीवित रखिये 
और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का सन्देश का दुनिया को दीजिये !!