दूल्हा सालिग्राम तुलसा बनी रे दुल्हनियां
एक दिन वो प्यारी तुलसा पनिया भरण को जाती है
बीच में मिल गईं चतुर राधिका वो इठला के बोली रे
तुलसा लागे है मेरी सौतानिया तुलसा बनी रे....
इतने वचन सुने तुलसा ने बदन गयो कुम्हलाई रे
हालात कंपत घर को आयिं पलंग लियो लटकाई रे
इतने में आए मनमोहन२ कैसी हो तुलसा अनमनिया
तुलसा बनी रे....
तुमरी राधा बड़ी चतुर है बोली ओली टोली रे
सब सखियन में तना मारे तुलसा सौत हमारी है
हरदम लिए हो अपनी राधा रनिया ओ हरदम..
तुलसा बनी रे...
छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन जो कोई पर जिमावे रे
बिन तुलसा कोई एक ना भावे करे जतन कोई लाखों रे
सिर के ऊपर ऐसे बैठी जैसे मुकुट में जड़ी मणियां
तुलसा बनी रे...
तुलसा मेरी परम प्यारी जाको भेद ना पावें रे
सुर नर मुनि जन सकल देवता विमल - विमल जस गावे रे
वेदों में लिखी इनकी गाथनिया
तुलसा बनी रे...
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