गुरुजी मेरी नैया लगा दो पार
चारों ओर रैन अंधियारी, भटक रही हूं मारी मारी
दीखत न है किनार, गुरुजी...
गहरी नदिया नाव पुरानी, खेवनहारों है नादानी
डूब न जाए मंझधार, गुरुजी...
मैं मूर्ख तेरी भजन न जानूं पूजा पाठ की विधि नहीं जानूं
मैं हूं असल गंवार, गुरुजी...
तेरे दर पे आ बैठी हूं, तुझसे प्रीत लगा बैठी हूं
कर दो भव से पार, गुरुजी...
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