Wednesday, November 25, 2020

में बस गयो नन्द किशोर बुला को वृंदावन में- Man Bas Gayo Nand Kishor- LYRICS-

मन बस गयो नन्द किशोर बुला लो वृंदावन में
बुला लो वृंदावन में हो हो हो

सौंप दिया अब जीवन तुमको मोहन काई विध
राखी हमको हम आन पड़े तेरे द्वार
बुला लो वृंदावन में
मन बस गयो नन्द किशोर बुला लो वृंदावन में

वृंदावन की धूल बना को यमुना तट का घाट बना लो
मैं तो सेवा करूं हाथ जोड़
बुला लो वृंदावन में
मन बस गयो नन्द किशोर बुला लो वृंदावन में

नौकर बन तेरी सेवा करूंगी तन मन धन सब अर्पण करूंगी, मैं तो दर्शन करूंगी उठ भोर
बुला लो वृंदावन में 
मन बस गयो नन्द किशोर बुला लो वृंदावन में

एक अरज प्रभु हमरी तुमसे चरणों की हमे धूल बना लो
हम नहीं जाना कहीं और
बुला लो वृंदावन में
मन बस गयो नन्द किशोर बुला लो वृंदावन में

मेरी सूख गई तुलसा पानी बिना - Meri Sookh Gayi Tulsa Pani Bina - LYRICS-

मेरी सूख गई तुलसा पानी बिना, पानी बिना राधा रानी बिना मेरी...

ताजे पानी की भरी बाल्टी, नहावे न श्याम राधा रानी बिना मेरी...

पाट पीताम्बर तसरी की धोती, पहने न श्याम राधा रानी बिना मेरी...

घिस घिस चंदन भरी कटोरी, तिलक न लेंवें श्याम राधा के बिना मेरी...

माखन मिश्री की भरी कटोरी भोग न लेवें श्याम राधा के बिना मेरी ...

छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन जेंवें न श्याम तुलसा के बिना
मेरी सूख ...

Sunday, November 22, 2020

वृंदावन मोय ऐसो लगे री -Vrindavan Moy Aiso Lage Ri - LYRICS-

वृंदावन मोए ऐसा लगे री जोगन बन जाऊं ओ राधिका
ब्रह्मा भी मिल गए विष्णु भी मिल गए
लक्ष्मी मिली मोए ऐसा लगे री
जोगन बन जाऊं ओ राधिका

भोले भी मिल गए गौरा भी मिल गईं 
गणपति मिले मोए ऐसा लगे री
जोगन बन जाऊं ओ राधिका

राम जी मिल गए सीता जी मिल गईं
हनुमत मिले मोए ऐसा लगे री
जोगन बन जाऊं ओ राधिका

राधा भी मिल गईं कुब्जा भी मिल गईं
मीरा मिली मोए ऐसा लगे री
जोगन बन जाऊं ओ राधिका

ऋषिगण भी मिल गए मुनिगन भी मिल गए
सतगुरु मिले मोए ऐसा लगे री
जोगन बन जाऊं ओ राधिका

मेरी सैंडल की फटकार - meri sandle ki darkar - LYRICS-

मेरी सैंडल की फटकार दुपट्टा मेरे काला हो जी काला
मेरे पिया गए परदेस लड़ाई लड़ के हो जी लड़ के
  
मैने भेजो ढाई सौ का तार अटैची में रख के हो जी रखके
मेरे बांचें पति भरतार मेज पे रख के हो जी रख केमुझे छुट्टी दे दो सरकार बीवी से आया लड़ के हो जी लड़ के

मेरी कहां गई सांव नार बता दो मुझको ही जी मुझको
तेरी नार गई सांवाल नार कुंए में गिर के हो जी गिर के
मैं तो लय गले का हार अटैची में रख के हो जी रख के

Thursday, November 19, 2020

इस आलीशान मकान का - Is Aalishaan Makan Ka - LYRICS-

इस आलीशान मकान का क्या देते हो आप किराया

पांच तत्व का महल बनाया कारीगर ने खूब सजाया
खाल मांस के पुर्जे बनाए सुंदर खूब सजाया
क्या देते हो आप किराया
इस आलीशान मकान का क्या देते हो आप किराया

इस महल के सास दरवाजे उपर कलश अंगूरी साजे
अनहद नौबत निषदन बाजे क्या सुंदर छत्र सजाया
क्या देते हो आप किराया
इस आलीशान मकान का क्या देते हो आप किराया

प्राण अपान का पंखा हिलाया ज्ञान का दीपक निशदिन्न जलता पांच तत्व की लगी कचहरी पल पल न्याय कराया
क्या देते हो आप किराया
इस आलीशान मकान का क्या देते हो आप किराया

 मालिक को हैं नहीं जाना कभी हुआ जगत में आना किस भूल में फायर दीवाना तेरी पग पग डोले काया
क्या देते हो आप किराया
इस आलीशान मकान का क्या देते हो आप किराया

अलख निरंजन राम की माया पूर्ण ब्रह्म एक दर्शाया
जीव ईश का भेद मिटाया आप में आप समाया
क्या देते हो आप किराया
इस आलीशान मकान का क्या देते हो आप किराया

Wednesday, November 18, 2020

मेरे सदगुरु दिन दयाल काग को - Mere Sadguru Deen Dayal Kaag Ko -LYRICS

मेरे सदगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते हैं

भरा यहां भक्ति का भंडार लगा यहां सतगुरु का दरबार
शब्द अनमोल सुनाते हैं में का भरम मिटाते हैं
मेरे सदगुरु दीन दयाल काग को हैं बनाते हैं

सतगुरु देते सत का ज्ञान जीव में हो इश्वर का ध्यान
वो अमृत खूब पिलाते हैं वो में की प्यास बुझाते हैं
मेरे सदगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते हैं

गुरुजी लेते नहीं कुछ दान वो खुद ही रखते भक्तों का ध्यान, वी अपना मान लुटाते हैं सभी का कष्ट मिटाते हैं
मेरे सदगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते हैं

करो सब गुरु चरणों का ध्यान ये करते तुमसे भक्त बयान
सारा दुख गुरुजी मिटाते हैं कि भव से पार लगाते हैं
मेरे सदगुरु दीन दयाल काग को हंस बनाते हैं


बहू को लगी पीर ऐसी उनमन में - bahu ko lagi peer aisi unman ne - LYRICS-

बहू को लगी पीर ऐसी उन्मन में
कहियो हमारे सुसर बड़े से जी सुसर बड़े से
मंगा दें हुए सोंठ उन्मन में रे
कहियो हमारी बहू बड़ी से बहू बड़ी से 
जनो  मत आज उन्मान में रे २
हमरो तो देश मुगलन ने घेरा, पठान ने घेरा
जनों मत आज उन्मण में रे
तुमरो तो देश ससुर भज क्यों न जाए बिडर क्यों न जाय
जानेंगे हम आज उन्मं में रे
शीश बांध, बैठी पलंग चढ़ बैठी, कमर कस बैठी, ललन जन बैठी, हमको मचा दी दौड़ा दौड़ ऐसी अनमन में

बहू को लगी पीर ऐसी उन मन में...

( इसी प्रकार से जेठ, देवर, ननदोई, और पति के लिए 
   कहना है । )