खींचे खींचे रे दुशासन मेरो चीर अरज सुनो बनवारी
हस्तिनापुर में जाकर देखो महफिल हो गयो भारी
कौरव पांडव सभा बीच में खड़ी द्रौपदी नारी
उनके नैनो से बरसे नीर अरज सुनो बनवारी
खींचे खींचे रे दुशासन मेरो चीर अरज सुनो बनवारी
पांचों पांडव ऐसे बैठे जैसे अबला नारी,
द्रौपदी अपने मन में सोचे दुर्गति हुई हमारी
नहीं धीर धरैया कोई वीर अरज सुनो बनवारी
खींचे खींचे रे दुशासन मेरो चीर अरज सुनो बनवारी
वो दिन याद करो kanahiya उंगली कटी तुम्हारी
दोनों हाथों पट्टी बांधी चीर के अपनी साड़ी
आ गई आ गई रे कनाहिया तेरी याद अरज सुनो बनवारी
खींचे खींचे रे दुशासन मेरो चीर अरज सुनो बनवारी
राधा छोड़ी रुकमिन छोड़ी छोड़ी गरुण सवारी
नंगे पांव कनाहियां आए ऐसे प्रेम पुजारी
बच गई बच गई रे द्रौपदी की लाज अरज सुनो बनवारी
खींचे खींचे रे दुशासन मेरो चीर अरज सुनो बनवारी
खींच के चीर दुशासन हारो हार गयो बलधारी
दुर्योधन की सभा बीच में चकित भाए नर नारी
बढ़ गयो बढ़ गयो रे हजारों गज चीर अरज सुनो बनवारी
खींचे खींचे रे दुशासन मेरो चीर अरज सुनो बनवारी