Wednesday, March 31, 2021

Lagai Mose Preet - लगाई मोसे प्रीत -LYRICS -

https://youtu.be/nX6pBgbcLyE

लगाई मोसे प्रीत क्यों तोड़ी रे

छूटे मैया छूटे बाबुल रे, छूटो मेरी छू टो मेरो छोटो सो भैया रे, लगाई मोसे प्रीत क्यों तोड़ी रे

मिलाओ मैया मिलाओ बाबुल रे, मिलाओ मेरो छोटो सो भैया रे, लगाई मोसे प्रीत क्यों तोड़ी रे

किधर गंगा किधर यमुना रे, किधर बेईमान के डेरा रे
लगाई मोसे प्रीत क्यों तोड़ी रे

पूरब गंगा पश्चिम जमुना रे, बीच बेईमान के डेरा रे
लगाई मोसे प्रीत क्यों तोड़ी रे

ले आओ स्याही ले आओ कागज रे, लिखूं बेईमान को पाती रे, पढे पाती फटे छाती रे,बाहें बेईमान के आंसू रे
लगाई मोसे प्रीत क्यों तोड़ी रे

Monday, March 29, 2021

अंगना में खेल रहे - Angna Me Khel Rahe - LYRICS-



अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी

गणपति पूजन मैं गई मेरे पीछे पीछे बालाजी
लड्डू को निगल गए छोटे से मेरे बालाजी
अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी


भोले पूजन मैं गई मेरे पीछे पीछे बालाजी
पिंडी से लिपट गए छोटे से मेरे बालाजी
अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी


राम पूजन मैं गई मेरे पीछे पीछे बालाजी
चरणों से लिपट गए छोटे से मेरे बालाजी
अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी


ब्रह्ममा पूजन मैं गई मेरे पीछे पीछे बालाजी
वेदों से लिपट गए छोटे से मेरे बालाजी
अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी


विष्णु पूजन मैं गई मेरे पीछे पीछे बालाजी
चक्र से लिपट गए छोटे से मेरे बालाजी
अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी


कान्हा पूजन मैं गई मेरे पीछे पीछे बालाजी
वंसी से लिपट गए छोटे से मेरे बालाजी
अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी


भजन करें को मैं गई मेरे पीछे पीछे बालाजी
ढोलक से लिपट गए छोटे से मेरे बालाजी
अंगना में खेल रहे छोटे से मेरे बालाजी

Sunday, March 28, 2021

देखो किसने उड़ाया गुलाल - Dekho Kisne Udaya Gulal - LYRICS


YouTube

किसने उड़ाया गुलाल लाल भई सारी नगरी 

केसर रंग गणपति ने उड़ाया 

रिद्धि सिद्धि ने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

देखो किसने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

केसर रंग भोले ने उड़ाया 

गौरा ने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

देखो किसने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

केसर रंग विष्णु ने उड़ाया 

लक्ष्मी ने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी

देखो किसने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

केसर रंग ब्रह्मा ने उड़ाया 

ब्राह्मणी ने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी

देखो किसने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी

केसर रंग राम जी ने उड़ाया 

सीता ने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

देखो किसने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

केसर रंग कान्हा ने उड़ाया 

राधा ने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी

देखो किसने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 

केसर रंग मैया ने उड़ाया 

भक्तो ने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी

देखो किसने उड़ाया गुलाल ...लाल भई सारी नगरी 


Saturday, March 27, 2021

तेरे दर पे खड़े - Tere Dar Pe Khade - LYRICS-


https://youtu.be/My7nwFsomTc


तेरे दर पे खड़े युग बीत गए मेरे संकट काटो बालाजी

मैं जल का लोटा लाई हूं जरा चरण धुला लो बालाजी
तेरे दर पे खड़े युग बीत गए मेरे संकट काटो बालाजी

मैं लाल लंगोट लाई हूं जरा वस्त्र पहन लो बालाजी
तेरे दर पे खड़े युग बीत गए मेरे संकट काटो बालाजी

मैं चंदन कटोरा लाई हूं जरा तिलक लगा लो बालाजी
तेरे दर पे खड़े युग बीत गए मेरे संकट काटो बालाजी

मैं बेला चमेला लाई हूं जरा माला पहन लो बालाजी
तेरे दर पे खड़े युग बीत गए मेरे संकट काटो बालाजी

मैं बूंदी के लड्डू लाई हूं जरा भोग लगा लो बालाजी
तेरे दर पे खड़े युग बीत गए मेरे संकट काटो बालाजी

Friday, March 26, 2021

उंगली झगड रहीं आपस में - Ungli Jhagad Rahi Aapas Me - LYRICS-




ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |
सुनो हमारी बात बहना सुनो हमारी बात |

पहली उंगली यो उठ बोली सुनो हमारी बात |
गोकुल में जब पानी बरसो परबत हमी उठाये | 

ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |

दूजी उंगली यो उठ बोली सुनो हमारी बात |
कान्हा जी को नहलाये धुला के तिलक हमी लगाये |

ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |
तीजी उंगली यो उठ बोली सुनो हमारी बात |
राम चन्द्र जब दूल्हा बने थे काजल हमी लगाये |

ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |

चौथी उंगली यो उठ बोली सुनो हमारी बात 
भूले भटके राहगीर को रास्ता हम ही बताये |

ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |

पांचो अंगूठा यो उठ बोलो सुनो हमारी बात |
साजन समधी द्वार पे आये तिलक हम ही लगाये |

ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |

छठी हथेली यो उठ बोली सुनो हमारी बात |
कथा भागवत सुनवे जावे ताली हम ही बजाये |

ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |

एक पड़ोसन  यो उठ बोली सुनो हमारी बात |
एक होकर मुक्का बन जाओ दुश्मन देयो भगाए |

ऊँगली झगड़ रही उंगली से बहना सुनो हमारी बात |




Thursday, March 25, 2021

निगुरा तू गुरुमुख हो जा - Nigura Re Tu Gurumukh Ho Ja - LYRICS-


https://youtu.be/DM6rcLUUXbs


नीगुरा रे तू गुरुमुख है जा गुरु बिन ज्ञान न आवेगो

एक निगुर कंजड़ घर बंदरा नित उठ नाच नचावेगो
जब बंदरा पे नाच न आवे संटिन मार लगावेगो
नीगुरा रे तू गुरुमुख है जा गुरु बिन ज्ञान न आवेगो

एक नीगुर धोबी घाट गधा नित उठ लाड़ लादावेगो
लाद उतार पार रख दीनी घुरें गैल बतावेगो
नीगुरा रे तू गुरुमुख है जा गुरु बिन ज्ञान न आवेगो

एक निगूरा तेली घर पड़ रा नित उठ पाट चलावेगो
जब पड़ारा पे चलाओ न जावे लट्ठन मार लागावेगो
नीगुरा रे तू गुरुमुख है जा गुरु बिन ज्ञान न आवेगो

एक नीगूरा वैश्य घर जन्मा पिता को नाम न जानेघो
ढूंढ त ढूंढ़ त जन्म बीत गयो पिता को नाम न जानो है
नीगुरा रे तू गुरुमुख है जा गुरु बिन ज्ञान न आवेगो


Atithi- Ek Jaankari

*अतिथि कौन है, अतिथि को पानी पिलाना,भोजन कराना, क्यों जरूरी है जानिए 10 खास बातें*

अतिथि को मेहमान समझा जाता है। ऐसा मेहमान या आगुंतक जो बगैर किसी सूचना के आए उसे अतिथि कहते हैं। हालांकि जो सूचना देकर आए वह भी स्वागत योग्य है। 

अतिथि का शाब्दिक अर्थ परिव्राजक, सन्यासी, भिक्षु, मुनि, साधु, संत और साधक से भी है। 

अतिथि देवो भव: अर्थात अतिथि देवता के समान होता है। घर आए अतिथि को अन्य जल ग्रहण कराना क्यों जरूरी है, आओ जानते हैं।

1. घर आया मेहमान यदि जल ग्रहण नहीं कर पाता है तो इससे राहु का दोष लगता है। अतिथि को कम से कम जल तो ग्रहण कराना ही चाहिए।

2. अन्न या स्वल्पाहर कराने से जहां उस अतिथि को भी लाभ मिलता है वहीं स्वागतकर्ता को भी लाभ मिलता है।

3. गृहस्थ जीवन में रहकर पंच यज्ञों का पालन करना बहुत ही जरूरी बताया गया है। 
उन पंच यज्ञों (1. ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, 3. पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ।) में से एक है अतिथि यज्ञ। यह प्रत्येक का कर्तव्य है।

4. अतिथि यज्ञ को पुराणों में जीव ऋण भी कहा गया है। यानि घर आए अतिथि, याचक तथा चींटियां-पशु-पक्षियों का उचित सेवा-सत्कार करने से जहां अतिथि यज्ञ संपन्न होता हैं वहीं जीव ऋण भी उतर जाता है।

5. तिथि से अर्थ मेहमानों की सेवा करना उन्हें अन्न-जल देना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इससे संन्यास आश्रम पुष्ट होता है। यही पुण्य है। यही सामाजिक कर्त्तव्य है।

6. प्रकृति का यह नियम है कि आप जितना देते हैं वह उससे दोगुना करके लौटा देती है। यदि आप धन या अन्न को पकड़ कर रखेंगे तो वह छूटता जाएगा। दान में सबसे बड़ा दान है अन्न दान। दान को पंच यज्ञ में से एक वैश्वदेवयज्ञ भी कहा जाता है।

7. गाय, कुत्ते, कौवे, चिंटी और पक्षी के हिस्से का भोजन निकालना जरूरी है, क्योंकि ये भी हमारे घर के अतिथि होते हैं।

8. किसी ऋषि, मुनि, संन्यासी, संत, ब्राह्मण, धर्म प्रचारक आदि का अचानक घर के द्वार पर आकर भिक्षा मांगना या कुछ दिन के लिए शरण मांगने वालों को भगवान का रूप समझा जाता था। घर आए आतिथि को भूखा प्यासा लोटा देना पाप माना जाता था। यह वह दौर था जबकि स्वयं भगवान या देवता किसी ब्राह्मण, भिक्षु, संन्यासी आदि का वेष धारण करके आ धमकते थे। प्राचीन काल में 'ब्रह्म ज्ञान' प्राप्त करने के लिए लोग ब्राह्मण बनकर जंगल में रहने चले जाते थे। आश्रम के मुनि उन्हें भिक्षा मांगने ग्राम या नगर में भेजते थे। उसी भिक्षा से वे गुजारा करते थे।

9. घर आए किसी भी मेहमान या आगुंतक का स्वागत सत्कार करना, अन्न या जल ग्रहण काराने से आपके सामाजिक संस्कार का निर्वहन होता है जिसके चलते मान सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।

10. अतिथियों की सेवा से देवी और देवता प्रसन्न होकर जातक को आशीर्वाद देते हैं।

*अतिथि का अर्थ* अतिथि संस्कृत का मूल शब्द है। 
इसे अंग्रेजी में गेस्ट कहते हैं और 
ऊर्दू में मेहमान। 
मालवा, निमाड़ और राजस्थान में पावणा, 
हिन्दी में अभ्यागत, आगंतुक, पाहुन या समागत कहते हैं। 
 
अतिथि का शाब्दिक अर्थ परिव्राजक, सन्यासी, भिक्षु, मुनि, साधु, संत और साधक से है। 

प्राचीन काल में अतिथि का प्रयोग प्राय: बगैर तिथि बताए आने वाले संतों या आगुंतकों से किया जाता था। 

यज्ञ के लिए सोमलता लानेवाला व्यक्ति को भी अतिथि कहा जाता था। समय आदि की सूचना दिए हुए घर में ठहरने के लिए अचानक आ पहुंचने वाला कोई प्रिय अथवा सत्कार योग्य व्यक्ति। वर्तमान में इसका अर्थ बदल गया जो कि उचित नहीं है। 

मुनि, भिक्षु, संन्यासी या ऋषि होता है अतिथि : अतिथि देवो भव: अर्थात अतिथि देवता के समान होता है। 

घर के द्वार पर आए किसी भी व्यक्ति को भूखा लौटा देना पाप माना गया है। गृहस्थ जीवन में अतिथि का सत्कार करना सबसे बढ़ा पुण्य माना गया है। 

प्राचीन काल में 'ब्रह्म ज्ञान' प्राप्त करने के लिए लोग ब्राह्मण बनकर जंगल में रहने चले जाते थे। उनको संन्यासी या साधु भी कहते थे।
 
ऋषि का पद प्राप्त करना तो बहुत ही कठिन होता है। ऋषियों में भी महर्षि, देवर्षि, राजर्षि आदि कई तरह के ऋषि होते थे। 

ये सभी समाज के द्वारा दिए गए दान पर ही निर्भर रहते थे। इनमें से सभी को प्रारंभिक शिक्षा के दौरान भिक्षा भी मांगना होती थी। उनमें से भी कई तो किसी गृहस्थ के यहां कुछ दिन आतिथ्य बनकर रहता था और उनको धर्म का ज्ञान देता था। एक गृहस्थ के लिए किसी संन्यासी का संत्संग बहुत ही लाभप्रद और पुण्यप्रद माना गया है।
 
*क्यों मानते हैं अतिथि को भगवान?* 

किसी ऋषि, मुनि, संन्यासी, संत, ब्राह्मण, धर्म प्रचारक आदि का अचानक घर के द्वार पर आकर भिक्षा मांगना या कुछ दिन के लिए शरण मांगने वालों को भगवान का रूप समझा जाता था। 

घर आए आतिथि को भूखा-प्यासा लौटा देना पाप माना जाता था। 

यह वह दौर था जबकि स्वयं भगवान या देवता किसी ब्राह्मण, भिक्षु, संन्यासी आदि का वेष धारण करके आ धमकते थे। तभी से यह धारणा चली आ रही है कि अतिथि देवों भव:।  लेकिन सि र्फ ऐसा नहीं है संन्यासी को अतिथि मानने के कारण यह धारणा है।

*अतिथि यज्ञ* गृहस्थ जीवन में रहकर पंच यज्ञों का पालन करना बहुत ही जरूरी बताया गया है। उन पंच यज्ञों में से एक है अतिथि यज्ञ। वेदानुसार पंच यज्ञ इस प्रकार हैं-1.ब्रह्मयज्ञ, 2. देवयज्ञ, 3. पितृयज्ञ, 4. वैश्वदेव यज्ञ, 5. अतिथि यज्ञ।
 
अतिथि यज्ञ को पुराणों में जीव ऋण भी कहा गया है। यानि घर आए अतिथि, याचक तथा पशु-पक्षियों का उचित सेवा-सत्कार करने से जहां अतिथि यज्ञ संपन्न होता हैं वहीं जीव ऋण भी उतर जाता है। तिथि से अर्थ मेहमानों की सेवा करना उन्हें अन्न-जल देना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इसआश्रम पुष्ट होता है। यही पुण्य है। यही सामाजिक कर्त्तव्य है।