औरों की गागर नित उठ भरते
मेरी मटकी मांझधार में अटकी
तुम तो मुरली वाले जन्म के कपटी
औरों का माखन नित उठ खाते
मेरा माखन अधरन बीच अटकी
तुम तो मुरली वाले जन्म के कपटी
औरों को दर्शन नित उठ देते
मेरी अखियां दर्शन को तरसिं
तुम तो मुरली वाले जन्म के कपटी
औरों की गैया नित ही चराते
मेरी गईया वन वन में भटकिं
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