Friday, December 25, 2020

पत्थर की मूरत को भगवान - Patthar Ki Murat Ko Bhagvaan -LYRICS

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं

गीले में सोई है सूखे में सुलाया है
बाहों के झूले में ललन को झुलाया है
ऐसी ही ममता को अपमान समझते हैं

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं

राखी के लिए बहना भाई को मांगती है
राखी बांधते में बहन दुआ मांगती है
ऐसे भी बंधन को अपमान समझते हैं

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं

बाज़ार में बैठी है लोगों ने बिठाया है
अपने तन के कपड़े उसको उधाए हैं 
ऐसे भी रिश्ते को अपमान समझते हैं

पत्थर की मूरत को भगवान समझते हैं
मां बाप की सेवा को अपमान समझते हैं


No comments:

Post a Comment