कहे अधर्मी सुनो पूतना तुम्हें गोकुल को जानो है
जितने बालक भाए गोकुल में सबे नार के आनी है
तेरी यही अक्ल मैने मानी, मेरी सुनो पूतना वाणी
अब कहे कंस अभिमानी मेरी सुनो पूतना वाणी
इतनी कह के चली पूतना रूप अनोखी धार लियो
कर सोलह सिंगार नार ने कुच में जहर छिपाए लियो
गोकुल को भयी रवानी, मेरी सुनो पूतना वाणी
अब कहे कंस अभिमानी मेरी सुनो पूतना वाणी
मैया लाल जनो आती सुंदर देखन की अभिलाषा है
इतनी कहकर लयो गोद में कुच से जहर पिलाए रही
तन से प्राण खींच रहे मोहन दिल में आती घबराए रही
ले कंस यों उमड़ा नी, मेरी सुनो पूतना वाणी
अब कहे कंस अभिमानी मेरी सुनो पूतना वाणी
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