शंकर त्रिपुरारी झुलावे शंकर त्रिपुरारी
पार्वती बोली शंकर से अरज सुनो मेरी
सावन की रुत आ सदाशिव छाई घटा प्यारी
झूले पार्वती जगदम्बा झुलावे शंकर त्रिपुरारी
गोकुल में राधा के संग में झूले बनवारी
तुम तो नाथ मेरे कभी न झूले भोला भंडारी
झूले पार्वती जगदम्बा झुलावे शंकर त्रिपुरारी
सर्पों की प्रभु डोर बनाई कल्पतरु की डाली
उस झूले में झूले भवानी शोभा अति प्यारी
झूले पार्वती जगदम्बा झुलावे शंकर त्रिपुरारी
सारा मंडल इस छवि ऊपर पल पल बलिहारी
भक्त कहें प्रभु दर्शन दे दो आस लगी भारी
झूले पार्वती जगदम्बा झुलावे शंकर त्रिपुरारी
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